Jai Shree Madhav

Kaliyug

कलियुग अंत के संकेत के विषय में जगन्नाथ संस्कृति एवं भविष्य मालिका में क्या वर्णन है? तथा जगन्नाथ मंदिर पुरी से युग अंत के क्या संकेत दिखाई देते हैं?

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6 May 2024
महात्मा पंचसखाओं ने भविष्य मालिका की रचना भगवान निराकार के निर्देश से की थी। भविष्य मालिका में मुख्य रूप से कलियुग के पतन के विषय में सामाजिक, भौतिक और भौगोलिक परिवर्तनों के लक्षणों का वर्णन किया गया है। शास्त्रों में उल्लेख के अतिरिक्त श्री जगन्नाथजी के मुख्य क्षेत्र को आदि वैकुंठ (मर्त्य वैकुंठ) बताया गया है। 5,000 वर्ष के कलियुग के बाद पंचसखाओं ने भक्तों के मन से संशय को दूर करने के लिए बताया कि भगवान की इच्छा के अनुसार श्री जगन्नाथजी के नीलाचल क्षेत्र से विभिन्न संकेत प्रकट होंगे जिनसे भक्तों को कलियुग की आयु के अंत और भगवान कल्कि के अवतरण के बारे में पूरी तरह से पता चल जाएगा। ये सारे तथ्य नीचे दिए गए गीत से हम समझ सकते हैं -
दिव्य सिंह अंके बाबू सरब देखिबु,
छाड़ि चका गलु बोली निश्चय जाणिबू
नर बालुत रुपरे आम्भे जनमिबू।
- गुप्त ज्ञान - अच्युतानंद दास
महात्मा अच्युतानंदजी ने उपरोक्त श्लोक में महाप्रभु श्री जगन्नाथ के प्रथम सेवक और सनातन धर्म के ठाकुर राजा (चौथे दिव्य सिंह देव) के विषय में वर्णन किया है। महापुरुष ने इसका भी उल्लेख किया कि जगन्नाथ के क्षेत्र में राजा इंद्रद्युम्न की परंपरा के अनुसार अलग-अलग समय में अलग-अलग राजा जगन्नाथ के क्षेत्र के प्रभारी थे। जब चौथे दिव्य सिंह देव कार्यभार संभालेंगे, तो 5000 साल बीत चुके होंगे। इससे महापुरुष अच्युतानन्द ने दो बातें सिद्ध कीं- एक ओर तो चौथे दिव्य सिंह देव राजा के रूप में पदभार संभालेंगे और दूसरी बात यह है कि कलियुग के 5,000 वर्ष पहले ही बीत चुके हैं। (अभी कलियुग का 5125वां वर्ष चल रहा है।)

महात्मा अच्युतानंद ने मालिका में लिखा कि जब चौथे दिव्य सिंह देव सत्ता में होंगे (जो आज हैं) तो वही कलियुग के अंत का प्रमाण होगा। पुनः महापुरुष अच्युतानंदजी ने उपरोक्त पंक्तियों में समझाया कि जब चतुर्थ दिव्य सिंह देव श्रीक्षेत्र में शासन करेंगे तो भगवान जगन्नाथ कल्कि अवतार ग्रहण कर मानव शरीर धारण कर साकार रूप में जन्म लेंगे और धर्म की संस्थापना का कार्य करेंगे।



महापुरुष अच्युतानंद जी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि चौथे दिव्य सिंह देव के समय में कलियुग पूरा हो जाएगा और भगवान जगन्नाथ को कल्कि के रूप में एक बालक होकर जन्म लेना होगा।
अच्युतानंदजी ने अपने ग्रंथ ‘अष्ट गुजरी’ में समझाया-
पूर्व भानु अबा पश्चिमें जिब अच्युत बचन आन नोहिब।
पर्वत शिखरे फुटिब कईं अच्युत बचन मिथ्या नुंहइ।
ठु ल सुन्यकु मु करिण आस ठिके भणिले श्री अच्युत दास।
अर्थात, अच्युतानंदजी मालिका की पवित्रता और सच्चाई की घोषणा कर भक्तों के मन में भक्ति और विश्वास को सजीव करते हुए कहते हैं कि सूरज पश्चिम दिशा में उदय हो सकता है और पर्वत की चोटी पर कमल खिल सकता है, लेकिन मेरे द्वारा लिखी वाणी कभी गलत सिद्ध नहीं होगी।
दिव्य केशरी राजा होइब तेबे कलियुग सरिब
चतुर्थ दिब्य सिंह थिब से काले कलियुग थिब।
अर्थात, महापुरुष अच्युतानंद ने उपरोक्त पंक्ति में लिखा है कि जब श्री क्षेत्र में चौथे दिव्य सिंह देव राजा होंगे तो कलियुग के अंत के पहले से ही सत्ययुग की शुरुआत होगी, लेकिन सत्ययुग का प्रभाव नहीं होगा। एक बार फिर एक और पंचसखा महात्मा जगन्नाथ दासजी, जो मां राधारानी की हंसी से अवतरित हुए थे, ने भी वज्र कंठ में घोषणा की-
पुरुषोत्तम देब राजान्क ठारु उनबीन्स राजा हेबे सेठारु
उनबीन्स राजा परे राजा नांहि आउ अकुली होइबे कुलकु बोहु।
उपरोक्त पंक्तियों में महापुरुष श्री जगन्नाथ दासजी ने लिखा है कि इस जगन्नाथ क्षेत्र के पहले राजा श्री पुरुषोत्तम देव होंगे। श्री पुरुषोत्तमदेव सहित 19 राजा मंदिर के शासन के लिए उत्तरदायी होंगे। वर्तमान समय में मालिका की बात सत्य हो रही है और 19 वें राजा के रूप में श्री दिव्य सिंह देव दायित्व निर्वहन कर रहे हैं। साथ ही महापुरुष जगन्नाथ दास ने लिखा कि 19वें राजा श्री दिव्य सिंह देव का कोई पुत्र नहीं होगा। मालिका की वाणी को मानकर आज प्रभु के भक्त प्रमाण पा रहे हैं। महापुरुषों ने जो लिखा उसके 600 वर्षों के बाद उनकी वाणी वास्तविकता बन गयी है। अतः यह समझ लेना चाहिए कि कलियुग समाप्त हो गया है और धर्म संस्थापना का कार्य चल रहा है।

महापुरुष अच्युतानंदजी ने भविष्य मालिका में लिखा-
चुलरु पथर जेबे खसिब सूत
खसिले अंला बेढ़ा रु हेब ए कलि हत।
महापुरुष अच्युतानंद दासजी ने भक्तों को सूचित करने के लिए लिखा है कि जब श्री जगन्नाथ धाम के मुख्य मंदिर से पत्थर गिरेगा तब हम जानेंगे कि कलियुग का अंत हो गया है। महापुरुष के ये वचन भी सिद्ध हो गए। गत 16.06.1990 को श्री मंदिर के आमला बेढ़ा से एक पत्थर गिरा और इसकी जांच के लिए केंद्रीय बजट विभाग द्वारा एक समिति गठित की गई, लेकिन अब तक वैज्ञानिक यह नहीं जान पाए कि इतना बड़ा पत्थर (1 टन से अधिक वजनी) कहां से और कैसे गिर गया? यह वैज्ञानिकों के लिए एक आश्चर्यजनक घटना रही है। सभी महात्माओं और ऋषियों के शब्द सत्य सिद्ध हुए है और भक्तों को चेतावनी देने के लिए आमला बेढ़ा से पत्थर गिर कर कलियुग के अंत का प्रमाण पहले ही दिया जा चुका है।

3. महापुरुष अच्युतानंदजी ने अपने भविष्य मालिका ग्रंथ ‘गरुड़ संवाद’ में उल्लेख किया है कि एक दिन भगवान के प्रमुख भक्त विनितानंदन गरुड़ ने महाप्रभु से पूछा कि 'भगवन, आपने चारों युग में अवतार लिया है और कलियुग के अंत में आप कल्कि अवतार लेंगे तो चार युगों के भक्तों और भगवान का मिलन होगा। जब आप नीलाचल छोड़ेंगे, दारु-ब्रह्म से साकार ब्रह्म बनेंगे तो भक्तों को वैकुंठ से क्या लक्षण दिखाई देंगे जिससे भक्तों को विश्वास हो जाएगा कि आपके कल्कि अवतार का समय आ गया है, ताकि भक्त मालिका का अनुसरण करें और आपका आशीर्वाद प्राप्त करें?'

महापुरुष अच्युतानंद ने भविष्य मालिका में लिखा है-
बड़ देउल कु आपणे जेबे तेज्या करिबे
कि कि संकेत देखिले मने प्रत्ये होइबे।
उपरोक्त पंक्तियों का यह अर्थ है कि जब भगवान नीलाचल छोड़ देंगे तो भक्तों को एक संकेत मिलेगा उसे देखकर ही विश्वास होगा।

तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा-
गरुड़ मुखकु चाँहिण कहुचंति अच्युत,
क्षेत्र रे रहिबे अनंत बिमला लोकनाथ।
इन पंक्तियों में भगवान गरुड़ से कह रहे हैं 'जब मैं नीलाचल छोडूंगा तब मेरे ज्येष्ठ भाई बलराम नीलाचल क्षेत्र का दायित्व ग्रहण करेंगे और नीलाचल क्षेत्र के क्षेत्राधीश्वर बनेंगे। शक्तिस्वरूपिणी मां विमला और लोकनाथ महाप्रभु उस समय उस क्षेत्र में होंगे, लेकिन मैं मानव रूप में जन्म लूंगा।'
फिर गरुड़ ने पूछा कि पहला संकेत क्या होगा ताकि भक्तगण मालिका को पढ़ कर समझ लें कि आपने नीलाचल छोड़ दिया है?

पुनः महापुरुष अच्युतानंद ने वर्णन किया है -
देउल रु चुन छाड़िब, चक्र बक्र होइब
माहालिआ होइ भारत अंक कटाउ थिब।
अर्थात, जब श्री जगन्नाथजी के मुख्य मंदिर में चूने का जो लेप है उस से कुछ-कुछ निकल आएगा (अर्थात, चूना झड़ने लगेगा), तब श्री जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर लगा नीलचक्र थोड़ा टेढ़ा हो जाएगा और उस समय भारत की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होगी।
जब जगन्नाथ मंदिर से चूने का लेप झड़ गया था, उस समय के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर थे जिन्होंने 3000 टन सोना गिरवी रख कर भारत में पैसे की कमी पूरी की और भारत ने बचाव की अर्थव्यवस्था लागू कर अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार किया। मालिका की उपरोक्त पंक्ति से सिद्ध होता है कि महापुरुष अच्युतानंदजी द्वारा आज से 600 वर्ष पूर्व कथित बातें सिद्ध हो चुकी हैं।

महाप्रभु श्रीकृष्ण दूसरे संकेत के बारे में बताते हैं-
बड़ देउल रु पथर जेबे खसिब पुण
गृध्र पक्षी जे बसिब अरुण र स्तम्भेण।
इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि जब आमला बेढ़ा से पत्थर गिरेगा तब अरुण (सूर्य पुत्र अरुण) स्तंभ के ऊपर बाज पक्षी अथवा गिद्ध बैठ जाएगा। यह सत्य सिद्ध हुआ और जिस समय आमला बेढ़ा से पत्थर गिरा, उस समय अरुण स्तंभ पर गिद्ध पक्षी भी बैठा।

4. हमारी शास्त्रीय परंपरा के अनुसार यदि किसी घर पर गिद्ध पक्षी बैठ जाए तो उस घर में रहने वाले लोगों पर यह आगामी संकट का संकेत होता है। उसी प्रकार श्री जगन्नाथ मंदिर के अरुण स्तंभ पर बैठे गिद्ध पक्षी का दिखना सम्पूर्ण विश्व के मनुष्यों के लिए बड़े संकट का लक्षण है। यह कलियुग के अंत और धर्म की स्थापना का पहला संकेत माना जाता है। फिर महापुरुष अच्युतानंद ने भक्त शिरोमणि गरुड़जी को बताया-
एही संकेत कु जानिथा हेतु मति की नेई
तोर मोर भेट होइब मध्य स्थल रे जाई।
अर्थात, गरुड़जी पूछते हैं, 'भगवान, जब आप कल्कि रूप में धरावतरण करेंगे तो मैं आपसे कहां मिल सकूंगा, कैसे मैं आपका दर्शन प्राप्त करूंगा और स्वयं को आपकी सेवा में समर्पित करूंगा?' महाप्रभु ने उत्तर देते हुए कहा- 'हे गरुड़, मैं आपको वहां मिलूंगा जहां ब्रह्मा का शुभ स्तंभ है, जिसे पृथ्वी का सूर्य स्तंभ माना जाता है और जो पृथ्वी का केंद्र कहलाता है।' महापुरुष अच्युतानंद जी ने 'हरिअर्जुन चौतिसा' में कलियुग के समाप्त होने, भगवान कल्कि के जन्म के विषय में और श्रीमंदिर में मिले अन्य संकेतों के बारे में उल्लेख किया है।
नीलाचल छाड़ि आम्भे जिबु जेतेबेले
लागिब रत्न चांदुआ अग्नि सेते बेले
निशा काले मन्दिररु चोरी हेब हेले
बड़ देऊलुमोहर खसिब पत्थर
बसिब जे गृध्र पक्षी अरुण स्तम्भर।
बतास रे बक्र हेब नीलचक्र मोर।
उक्त पंक्तियों में महापुरुष अच्युतानन्द जी ने ये स्पष्ट किया है कि 'जब मैं नीलाचल को छोड़ दूंगा तो मेरे रत्नजड़ित सिंहासन के ऊपर के रत्नजड़ित छत्र में आग लग जाएगी, मेरे श्री मंदिर के परिसर में आधी रात को चोरी होगी और दिग्गजों से पत्थर गिरेंगे। बतास (तूफान) के कारण नीलचक्र मुड़ कर टेढ़ा हो जाएगा। गिद्ध पक्षी मेरे अरुण स्तंभ पर बैठ जाएगा।' श्रीमंदिर के श्री जगन्नाथ क्षेत्र में ये सभी बातें घट चुकी हैं और मालिका की वाणी पूरी तरह सत्य हुई है। इससे कलियुग के पतन का संकेत प्राप्त हुआ है।

फिर ‘कलियुग गीता’ के दूसरे अध्याय में महापुरुष अच्युतानंदजी श्री जगन्नाथ के क्षेत्र से विशेष संकेत के विषय में बताते हैं।
मुंहि नीलाचल छाड़ि जिबि हो अर्जुन
मोहर भंडार घरे थिब जेते धन।
तांहिरे कलंकी लागि जिब क्षय होइ
मोहर सेवक माने बाटरे न थाई।
उपरोक्त पंक्तियों में अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रश्न किया कि 'जब आप नीलाचल को छोड़ देंगे तो श्रीक्षेत्र से क्या चिह्न दिखाई देंगे, कृपया मुझे इसके बारे में बताएं।' भगवान श्रीकृष्ण उत्तर देते हुए कहते हैं, 'अर्जुन, जब मैं नीलाचल को छोड़ूंगा, तो मेरे मंदिर के परिसर में स्थित भंडार घर की ख्याति नहीं रहेगी, जिसका अर्थ है कि खजाने यानी भण्डारगृह का धन नष्ट हो जाएगा और खजाने के प्रभारी सेवक धर्म का आचरण नहीं करेंगे।'
जैसा अच्युतानंदजी ‘कलियुग गीता’ के दूसरे अध्याय में वर्णन करते हैं-
बहुत अन्याय करि अरजिबि धन
तंहिरे ताहांक दुःख नोहिब मोचन।
खाइबाकु नमिलिब किछि न अन्टिब
मोहर बड़पण्डान्कु अन्न न मिलिब।
मोहर बड़ देऊलु खसिब पत्थर
श्रीक्षेत्र राजन मोर नसेबि पयर
राज्य जिब नाना दुःख पाइबा टी सेइ
तांकू मान्य न करिब अन्य राजा केहि।
'जब मैं नीलाचल छोड़ूंगा तब कलियुग समाप्त हो जाएगा। जैसे ही मैं श्रीक्षेत्र छोडूंगा, मेरे क्षेत्र में बहुत अन्याय होगा। मेरे अधीन पार्षद तरह-तरह के अन्याय करके पैसा कमाएंगे, और आने वाले समय में मेरे प्रधान सेवक ठीक से अपना भरण-पोषण भी नहीं कर पाएंगे।' इस प्रकार के अनेक परिवर्तन श्री मंदिर में होंगे।

महापुरुष अच्युतानंद ने मालिका में जगन्नाथ क्षेत्र से और एक संकेत का उल्लेख किया है-
पेजनला फुटी तोर पडिब बिजुली
से जुगे जिब की प्रभु नीलांचल छाड़ि।
जब जगन्नाथ के रसोई घर पर बिजली गिरेगी, तब कलियुग समाप्त हो जाएगा और श्री जगन्नाथ नीलाचल को छोड़कर मानव रूप धारण करेंगे। पिछले दिनों जगन्नाथ की रसोई घर पर बिजली गिरी थी। इससे यह माना जा सकता है कि श्री जगन्नाथ जी नीलाचल को छोड़कर मानव शरीर धारण कर चुके हैं।
पुनः महापुरुष अच्युतानंदजी अपने ग्रंथ ‘चौषठि पटल’ में जगन्नाथ क्षेत्र से एक और संकेत के बारे में वर्णन करते हैं। वे श्री कल्पवट की महिमा, श्री कल्पवट के क्षय, कलियुग के अंत और भगवान श्री जगन्नाथ के नीलाचल को छोड़कर मानव शरीर धारण करने का प्रमाण देते हुए कहते हैं-
से बट मुलरे अर्जुन जेहु बसिब दंडे
मृत्यु समये न पड़िब यम राजर दंडे।
से बट मोहर बिग्रह जंहु हेले आघात
मोते बड़ बाधा लागई सुण मघबासूत।
से बट रु खंडे बकल जेहु देब छड़ाई
मोहर चर्म छडाइला परि ज्ञांत हुअइ।
श्री मंदिर के अंदर कल्पवट भगवान के विग्रह के समान है। कल्पवट की तुलना भगवान के शरीर से की गई है। कल्पवट से कोई छोटा-सा टुकड़ा भी तोड़ ले तो भगवान के शरीर को बहुत कष्ट होता है। आज कल्पवट की शाखा बार-बार टूट रही है। महापुरुष की वाणी के अनुसार यदि कल्पवट की शाखा टूट जाती है तो भगवान नीलाचल को छोड़कर मनुष्य का शरीर ग्रहण कर चुके हैं।

महापुरुष अच्युतानंद ने इसी विषय पर लिखा है कि-
कल्प्बट घात हेब जेतेबेले
नीलाचल छाड़ि जिबे मदन गोपाले।
कल्प्बट शाखा छिड़ि पड़िब से काले
नाना अकर्म मान हेब क्षेत्रबरे।
रूद्र ठारु उनविंश पर्यन्त सेठारे
स्थापना होइबे मोर सेवादी भाबरे।
बड़ देउलरे मुंही नरहिबी बीर
बाहार होइबि देखि नर अत्याचार।
महापुरुष अच्युतानंदजी ने उपरोक्त पंक्तियों में उल्लेख किया है कि जब कल्पवट शाखा टूटेगी तो मेरे क्षेत्र में बहुत अन्याय, अनीति, अनुशासनहीनता और अराजकता फैल जाएगी। इस समय भगवान श्री जगन्नाथ मनुष्यों के अत्याचार को देखकर मंदिर त्यागकर मानव शरीर ग्रहण करेंगे। भगवान कल्कि की उम्र के 11 से 19 साल के बीच सरकार द्वारा श्रीमंदिर का दायित्व संभालने के लिए नए सेवक रखे जाएंगे। मालिका की बात आज सच हो गई है।
पुनः महात्मा अच्युतानंद ने यह वर्णन करते हैं कि-
बड़ देऊलु मोहर पत्थर खसिब
गृध्र पक्षी नील चक्र उपरे बसिब।
दिने दिने चलुरे मु न होइबि दृश्य
भोग सबु पोता हेब जान पाण्डु शिष्य।
समुद्र जुआर माड़ि आसीब निकटे
रक्ष्या नकरिबे केहि प्राणींकु संकटे।
महापुरुष ने फिर वर्णन किया कि जब नीलचक्र पर गिद्ध बैठता है तब श्री जगन्नाथ के श्रीमंदिर से बारम्बार पत्थर गिरता है। उस समय महाप्रसाद के अर्पण में महाप्रभु जगन्नाथ दर्शन नहीं देंगे। कई बार महाप्रसाद मिट्टी के नीचे दबा दिया जाएगा। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि श्री जगन्नाथजी की मंदिर-परंपरा के अनुसार जब भगवान जगन्नाथ को महाप्रसाद चढ़ाया जाता है तो श्री जगन्नाथ महाप्रसाद चढ़ाने वाले मुख्य पुजारी को दर्शन देते हैं। लेकिन महापुरुष अच्युतानंद की चेतावनी के अनुसार जब गिद्ध पक्षी या बाज पक्षी नीलचक्र पर बैठेगा, उस समय भगवान के श्री मंदिर से पत्थर गिरेगा और जगन्नाथ महाप्रभु महाप्रसाद अर्पण की विधि में दर्शन नही देंगे। इसके फलस्वरूप महाप्रभु का महाप्रसाद मिट्टी में दबा दिया जाएगा। फिर महापुरुष अच्युतानंद ने एक उल्लेख चेतावनी के रूप में किया कि इस समय समुद्र भूमि से बहुत ऊपर उठेगा और पृथ्वी पर बाढ़ आएगी जो आज धरती पर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। उसके बाद भी कई बड़े-बड़े संकट आने वाले हैं। इसलिए उन्होंने एक सहृदय संत होने के नाते कलियुग के मनुष्यों को सचेत किया कि लोगो में मानसिक परिवर्तन हो, वे वैष्णव धर्म के प्रति पूर्ण समर्पित हों और अभक्ष्य भक्षण समेत अन्य दुर्गुणों का त्याग करें।

महापुरुष ने इस सन्दर्भ में फिर से वर्णन किया है-
श्री धामरु एक बड़ पाषाण खसिब
दिबसरे उल्लूक तार उपरे बसिब।
मो भुबने उल्कापात हेब घन घन
जेउ सबु अटे बाबू अमंगल चिन्ह।
महापुरुष ने कहा कि श्री जगन्नाथजी के मुख्य मंदिर से एक विशाल पत्थर गिरेगा और दिन के समय में पत्थर पर एक उल्लू बैठेगा। ये दोनों संकेत मंदिर में पहले ही घटित हो चुके हैं। भविष्य में श्री जगन्नाथ क्षेत्र में बार-बार उल्कापिंड गिरेगा, जैसा हमें महापुरुष के द्वारा रचित अनेक ग्रंथों से पता चलता है।
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