Kaliyug
कलयुग की वास्तविक आयु क्या है और श्रीमद्भागवत महापुराण में इसका क्या वर्णन है?
यह संवाद के अनुसार उस समय घोर कलियुग चल रहा था और कलियुग दारुण (मध्य)अवस्था में था, ऐसा नारद मुनि भक्ति देवी को कह रहे थे। यह नीचे दिए गए श्ल्लोक से स्पष्ट होता है। अभी कलियुग को 5128 वर्ष बीत गए हैं | हमें यह सोचना होगा कि अभी कलियुग की कौन सी अवस्था चल रही होगी?
इह घोरे कल्लौ प्रायो जीवश्चासुरतां गतः।इस घोर कल्नि-कातमें जीव प्रायः आसुरी स्वभावके हो गये हैं, विविध क्लेशोंसे आक्रान्त इन जीवोंको शुद्ध (दैवीशक्तिसम्पन्न) बनानेका सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है ? ॥6॥
क्लेशाक्रान्तस्य तस्यैव शोधने कि परायणम्॥- श्रीमद् भागवत महापुराण
हरिक्षेत्रं कुरक्षेत्र श्रीर्ठग सेतुबन्धनम्॥। एवमादिषु तीर्थषु भ्रममाण इतस्ततः॥ 29नारदजीने कहा-मैं सर्वोत्तम लोक समझकर पृथ्वीमें आया था। यहाँ पुष्कर, प्रयाग, काशी, गोदावरी (नासिक), हरिद्वार, कुरुक्षेत्र, श्रीरंग और सेतुबन्ध आदि कई तीर्थों में मैं इधर-उधर विचरता रहा; किन्तु मुझे कहीं भी मनको संतोष देनेवाली शान्ति नहीं मिली। इस समय अधर्मके सहायक कलियुग ने सारी पृथ्वीको पीड़ित कर रखा है।॥ 28-30॥
नापश्यं कुत्रचिच्छर्म मनःसंतोषकारकम्। कलिनाधर्ममित्रेण धरेयं बाधिताधुना।। 30- श्रीमद् भागवत महापुराण
सत्यं नास्ति तपः शौच दया दानं न विद्यते।अब यहाँ सत्य, तप, शौच (बाहर-भीतरकी पवित्रता), दया, दान आदि कुछ भी नहीं है। बेचारे जीव केवल अपना पेट पालनेमें लगे हुए हैं; वे असत्यभाषी, आलसी, मन्दबुदधि, भाग्यहीन, उपद्रवग्रस्त हो गये हैं। जो साधु-संत कहे जाते हैं वे पूरे पाखण्डी हो गये हैं; देखने में तो वे विरकत हैं, किन्तु स्त्री-धन आदि सभीका परिग्रह करते हैं। घरोंमें स्त्रियोंका राज्य है, साले सलाहकार बने हुए हैं, लोभसे लोग कन्या-विक्रय करते हैं और स्त्री पुरुषोंमें कलह मचा रहता है। 3-33॥
उदरम्भरिणो जीवा वराकाः कूटभाषिणः॥ 34
मन्दाः सुमन््दमतयो मन्दभाग्या हयपगताः।
पाखण्डनिरताः सन््तो विरक्ताः सपरिग्रहा:॥ 3३2
तरुणीप्रभुता गेहे श्यालको बुद्धिदायकः|
कन्याविक्रयिणो लोभाददम्पतीनां च कल्कनम्॥33- श्रीमद् भागवत महापुराण
आश्रमा यवनै रुधास्तीर्थानि सरितस्तथा।महात्माओंके आश्रम, तीर्थ और नदियोंपर यवनों (विधर्मियों) का अधिकार हो गया है; उन दुष्टोंने बहुत-से देवालय भी नष्ट कर दिये हैं॥34॥
देवतायतनान्यत्र दुष्टैनष्टानि भूरिशः ।। 34- श्रीमद् भागवत महापुराण
न योगी नैव सिद्धो वा न ज्ञानी सक्रियो नरः।इस समय यहाँ न कोई योगी है न सिद्ध है; न ज्ञानी है और न सत्कर्म करनेवाला है। सारे साधन इस समय कलिरूप दावानलसे जलकर भस्म हो गये हैं। 35॥
कलिदावानलेनादय साधन भस्मतां गतम् || 35- श्रीमद् भागवत महापुराण
अट्टशूल्रा जनपदाः शिवशूल्रा दविजातयः।इस कलियुग में सभी देशवासी बाजारोंमें अन्न बेचने लगे हैं, ब्राहमणलोग पैसा लेकर वेद पढ़ाते हैं और स्त्रियाँ वेश्या वृतिसे निर्वाह करने लगी हैं॥36॥
कामिन्यः केशशूलिन्य: सम्भवन्ति कलाविह।
अट्टमन्नं शिवो वेदः शूल्रो विक्रय उच्यते।- श्रीमद् भागवत महापुराण
उत्पन्न्ना द्रविडे साहं वृद्धिं कर्णाटके गता।मैं द्रविड़ देश में उत्पन्न हुई, कर्णाठक में बढ़ी, कहीं कहीं महाराष्ट्र में सम्मानित हुई; किन्तु गुजरात में मुझको बुढ़ापे ने आ घेरा ॥48॥
क्वचित्क्वचिन्महाराष्ट्र गुर्जरे जीर्णतां गता ॥48- श्रीमद् भागवत महापुराण
तत्र घोरकलागात्पाखण्डैः खण्डिताइगका।वहाँ घोर कलियुग के प्रभावसे पाखण्डियोंने मुझे अंग- भंग कर दिया। चिरकालतक यह अवस्था रहनेके कारण मैं अपने पुत्रों के साथ दर्बल और निस्तेज हो गयी |49॥
दुर्बलाहं चिरं याता पुत्राभ्यां सह मन्दताम्॥ 49- श्रीमद् भागवत महापुराण
तेन सदाचारो नारद उवाच शुणुष्वावहिता बाले युगोउ्यं दारुणः।नारदजीने कहा-देवि! सावधान होकर सुनो। यह दारुण कलियुग है। इसीसे इस समय सदाचार, योगमार्ग और तप आदि सभी लुप्त हो गये हैं। 57॥
कलिः तेन लुप्तः सदाचार योगमार्गस्तपांसि च ॥ 57- श्रीमद् भागवत महापुराण
जना अधघासुरायन्ते शाठयदुष्कर्मकारिण:।लोग शठता और दुष्कर्ममें ल्रगकर अघासुर बन रहे हैं। संसारमें जहाँ देखो, वहीं सत्पुरुष दुःखसे म्लान हैं और दुष्ट सुखी हो रहे हैं। इस समय जिस बुद्धिमान् पुरुषका धैर्य बना रहे, वही बड़ा ज्ञानी या पण्डित है।॥58॥
इह सनन्तो विषीदन्ति प्रहृष्यन्ति हयसाधवः |
धत्ते धैर्य तु यो धीमान् स धीरः पण्डितो5थवा || 58- श्रीमद् भागवत महापुराण
अस्पृश्यानवलोक्येयं शेषभारकरी धरा।पृथ्वी क्रमशः प्रतिवर्ष शेषजीके लिये भाररूप होती जा रही है। अब यह छुनेयोग्य तो क्या, देखनेयोग्य भी नहीं रह गयी है और न इसमें कहीं मंगल ही दिखायी देता है | 59॥
वर्ष वर्ष क्रमाज्जाता मड़गलं नापि दृश्यते ॥ 59- श्रीमद् भागवत महापुराण