Kaliyug
कलियुग की वास्तविक आयु
युग-गणना के विभिन्न मत - युग-गणना के संदर्भ में मुख्य रूप से तीन मत प्रचलित हैं:
- पहले मत के अनुसार कुछ लोगों का मानना है कि युगचक्र 24,000 वर्ष का होता है, जिसमें क्रमशः सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग के बाद विपरीत क्रम में पुनः कलियुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग और सत्ययुग आते हैं।
- दूसरे मत के अनुसार युग की गणना देव युग के आयु से की गई है: इसका मतलब है कि देवताओं के एक वर्ष के बराबर मनुष्य के 360 वर्ष होते हैं एवं सम्पूर्ण चतुर्युग देवताओं के 12,000 वर्ष के बराबर माना गया है। जिसके अनुसार सत्ययुग की अवधि 17,28,000 वर्ष, त्रेतायुग की 12,96,000 वर्ष, द्वापरयुग की 8,64,000 वर्ष, और कलियुग की 4,32,000 वर्ष होती है।
- तीसरे मत के अनुसार युग की गणना मनुष्य के आयु से की गई है: सत्ययुग की अवधि 4,800 वर्ष, त्रेतायुग की 3,600 वर्ष, द्वापरयुग की 2,400 वर्ष, और कलियुग की 1,200 वर्ष होती है। इन तीनों मतों का समर्थन विभिन्न प्राचीन ग्रंथों और विद्वानों के अध्ययनों से होता है। चारों युगों की वास्तविक आयु क्या है? निम्नलिखित प्रमाणों के आधार पर इसका सही वर्णन आगे किया गया है -
पहला मत
क्या युग गणना 24,000 वर्षों के अनुसार होती है ?
श्रीमद्भागवत महापुराण (12.2.39)इस पुराण का यह श्लोक युगचक्र के विपरीत क्रम का समर्थन नहीं करता है, बल्कि स्पष्ट रूप से यह पुष्टि करता है कि सत्ययुग , त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग वस्तुतः उसी क्रम में दोहराए जाते हैं। यह तात्पर्य यही है कि युगचक्र 24,000 वर्षों का नहीं होता है।
अन्य ग्रंथों का समर्थन -
अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी यही वर्णन मिलता है कि सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग पुनः उसी क्रम में दोहराए जाते हैं।
यह संकेत देता है कि युगों की गणना का पहला मत, जो युगचक्र को 24,000 वर्षों का मानता है, सटीक नहीं है।
दूसरा मत
क्या युग की गणना देव वर्ष के अनुसार होती है ?
ये ते रात्र्यहनी पूर्वं कीर्तिते जीवलौकिके ।
तयोः संख्याय वर्षाग्रं ब्राह्मे वक्ष्याम्यहः क्षपे ।। १८ ।।
पृथक् संवत्सराग्राणि प्रवक्ष्याम्यनुपूर्वशः ।
कृते त्रेतायुगे चैव द्वापरे च कलौ तथा ।। १९ ।।- महाभारत शांति पर्व 231.18-19
यह श्लोक मानवीय संदर्भ में युगों की लंबाई की गणना करता प्रतीत होता है।
चत्वार्याहुः सहस्राणि वर्षाणां तत् कृतं युगम् ।
तस्य तावत्शती सन्ध्या सन्ध्यांशश्च तथाविधः ॥- मनुस्मृति 1.69:1
मनुस्मृति के इस श्लोक में कृत युग की अवधि के लिए 4,000 वर्ष बताए गए हैं, और संध्या के लिए अतिरिक्त 400 वर्ष का समय दिया गया है। इस श्लोक से भी यह स्पष्ट होता है कि युगों की गणना मानवीय आयु के हिसाब से की गई है, न कि दिव्य युग के हिसाब से।
इन श्लोकों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि युगों की गणना मानवीय आयु के आधार पर की गई है, और इस प्रकार दूसरे मत का समर्थन नहीं किया जा सकता जो कहता है कि युगों की गणना देव युग के आयु से की गई है।
इस प्रकार, महाभारत और मनुस्मृति के प्रमाण यह दर्शाते हैं कि युगों की गणना मानवीय आयु के आधार पर की गई है।
श्री बाल गंगाधर तिलक का तर्क
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, जिन्हें महात्मा गांधी ने "आधुनिक भारत का निर्माता" कहा था और स्वामी विवेकानंद ने भी बड़े आदर से देखा था, ने अपनी पुस्तक The Arctic Home in the Vedas (द आर्कटिक होम इन द वेदास) -1903 में युगों की अवधि के बारे में महत्वपूर्ण दावा किया। तिलक के अनुसार, युग लाखों वर्षों के नहीं होते और चारों युगों की आयु केवल 12,000 वर्ष की ही होती है।
तिलक ने यह भी तर्क दिया कि हमारे धर्म ग्रंथों में विभिन्न लेखकों और टीकाकारों ने युगों की आयु को बढ़ा-चढ़ाकर बताया है। विशेषकर, पुराणों के लेखक कलियुग की अवधि (1,200 मानव वर्ष) को बढ़ाना चाहते थे ताकि पूरे युगचक्र का विस्तार हो सके।
तिलक ने लिखा है कि यदि कलियुग की अवधि 1,000 वर्ष या संध्या एवं संध्यांश (युगसंधि की अवधि) सहित 1,200 सामान्य वर्ष ही हो, तो यह ईस्वी सन की शुरुआत के आसपास समाप्त हो चुका होता। तिलक का मानना था कि पुराण, जिनमें अधिकतर ईसा की पहली कुछ शताब्दियों के दौरान लिखे गए प्रतीत होते हैं, के लेखक स्वाभाविक रूप से यह मानने को तैयार नहीं थे कि कलियुग का अंत हो चुका है।
श्री कृष्णवल्लभाचार्य जी की व्याख्या -
श्री कृष्णवल्लभाचार्य जी, जो स्वामीनारायण मंदिर, जूनागढ़ के प्रमुख आध्यात्मिक नेता थे, ने अपने ग्रंथों में युग गणना पर गहन अध्ययन प्रस्तुत किया। उन्होंने 'लक्ष्मी नारायण संहिता' नामक महाकाव्य में 1,26,000 श्लोक लिखे, जिसे महाभारत के बाद विश्व के इतिहास में दूसरा सबसे बड़ा महाकाव्य माना जाता है।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने 44 अन्य विद्वत्तापूर्ण मौलिक ग्रंथों की रचना की। उनके ग्रंथ 'अभिनन्दन' में, श्री कृष्णवल्लभाचार्य जी ने युग गणना की विस्तृत व्याख्या प्रदान की है, जिसमें उन्होंने बताया कि युगचक्र की अवधि केवल 12,000 मानव वर्षों की होती है।
उन्होंने युगों की भोग आयु का विशेष वर्णन किया, जिसमें प्रत्येक युग के दौरान मानवों द्वारा अनुभवित जीवनकाल और घटनाओं को समझाया गया है। इस व्याख्या से यह स्पष्ट होता है कि युगों के संदर्भ में विभिन्न विद्वानों के विचारों में महत्वपूर्ण मतभेद हैं, और श्री कृष्णवल्लभाचार्य जी का योगदान इस विषय में गहराई से चिंतन प्रदान करता है।
विभिन्न संतों तथा परंपराओं की राय -
पंडित श्रीराम शर्मा, ब्रह्माकुमारी संस्था, 15वीं सदी के गुजरात के महान संत देवायत पंडित, और विभु देव मिश्र ने अपनी पुस्तक "युग शिफ्ट" में; प्राचीन संस्कृतियों की मान्यताएँ, फारसी परंपरा, इट्रस्केन, ग्रीक और रोमन दार्शनिकों, यूनानी दार्शनिक प्लेटो, ज़ोरोस्टर की भविष्यवाणियों, और ग्राहम हैनकॉक की नई किताब "मैजिशियन्स ऑफ द गॉड्स" में युगचक्र की कुल अवधि को 12,000 वर्ष माना गया है।
विभिन्न परंपराओं और संस्कृतियों में युगचक्र की कुल अवधि 12,000 वर्ष मानी गई है, जो कि धार्मिक ग्रंथों और वैज्ञानिक अनुसंधानों से प्रमाणित होती है।
इस प्रकार शास्त्रों, विभिन्न परंपराओं और संस्कृतियों में युगचक्र की कुल अवधि 12,000 वर्ष मानी गई है, जो कि धार्मिक ग्रंथों और वैज्ञानिक अनुसंधानों से प्रमाणित होती है।
तीसरा मत -
क्या युग की गणना मनुष्य के आयु के अनुसार होती है, जिसमें सत्ययुग की अवधि 4,800 वर्ष, त्रेतायुग की 3,600 वर्ष, द्वापरयुग की 2,400 वर्ष, और कलियुग की 1,200 वर्ष होती है ? यदि इस लोकप्रिय मत को समझे तो -
सत्ययुग
- मानव वर्ष: 4,000 वर्ष
- सन्ध्या: 400 वर्ष
- सन्ध्यांश: 400 वर्ष
- कुल अवधि: 4,800 वर्ष
त्रेतायुग
- मानव वर्ष: 3,000 वर्ष
- सन्ध्या: 300 वर्ष
- सन्ध्यांश: 300 वर्ष
- कुल अवधि: 3,600 वर्ष
द्वापरयुग
- मानव वर्ष: 2,000 वर्ष
- सन्ध्या: 200 वर्ष
- सन्ध्यांश: 200 वर्ष
- कुल अवधि: 2,400 वर्ष
कलियुग
- मानव वर्ष: 1,000 वर्ष
- सन्ध्या: 100 वर्ष
- सन्ध्यांश: 100 वर्ष
- कुल अवधि: 1,200 वर्ष
इसलिए युग गणना का यह तीसरा मत भी सहीवास्तविकता नहीं बैठता।
तो वास्तविकता क्या है और युगों की सही आयु क्या है?
वास्तविकता
यथा वेदश्चतुष्पादश्चतुष्पादं तथा युगम्।जिस प्रकार भगवान ने वेदों को चतुष्पाद बनाया है उसी प्रकार ब्रह्माजी ने भी प्रत्येक युग को चार पादों में विभक्त किया है। जिसका वर्णन श्री कृष्णवल्लभाचार्य जी ने भी अपने ग्रन्थ 'अभिनन्दन' में किया है।
यथा युगं चतुष्पादं विधात्रा विहितं स्वयम्॥
चतुष्पादं पुराणं तु ब्रह्मणा विहितं पुरा॥- वायु पुराण (अध्याय 32.67)
इन चार पादों के नाम इस प्रकार हैं -
- प्रक्रिया पाद
- अनुषंग पाद
- उपोद्घात पाद
- संहार पाद
- वायु पुराण (अध्याय 32)
चत्वार्याहुः सहस्त्राणि वर्षाणां च कृतं युगम् ।कृते वै प्रक्रियापादश्वतुःसाहस्र उच्यते ।
तस्य तावच्छती सन्ध्या सन्ध्यांशश्च तथा विधः॥ 58
तस्माच्चतुःशतं संध्या संध्यांशश्च तथाविधः॥
कृते वै प्रक्रियापादश्वतुःसाहस्र उच्यते ।सत्ययुग 4,000 मानव वर्ष का होता है । उसकी ‘सन्ध्या’ 400 वर्षों की होती है और ‘सन्ध्यांश’ 400 वर्षों का होता है । इस प्रकार सत्ययुग 4,800 वर्षों का और उसका एक पाद अर्थात चतुर्थ भाग 1,000 का होता है। 1,200 सौ वर्ष की आयु सत्ययुग की होती है।
तस्माच्चतुःशतं संध्या संध्यांशश्च तथाविधः॥ 59
त्रेता त्रीणि सहस्त्राणि, संख्यया मुनिभिः सह।त्रेतायुग 3,000 मानव वर्ष का होता है और उसकी संध्या के 300 वर्ष तथा सन्ध्यांश के 300 वर्ष मिलाकर 3,600 मानव वर्ष की आयु त्रेतायुग की होती है । यह त्रेतायुग दो भाग को भोगता है, एक प्रक्रिया पाद और दूसरा अनुषंग पाद, उन दोनों पाद के वर्ष और उस हिसाब से संध्या तथा संध्यांश के वर्ष मिलाकर 2,400 वर्षों की आयु त्रेतायुग भोगता है।
तस्यापि त्रिशती सन्ध्या सन्ध्यां शस्त्रिशतः स्मृतः॥ 60
अनुषङ्गपादस्त्रेतायास्त्रिसाहस्रस्तु संख्यया।
द्वापरे हे सहस्रे तु वर्षाणां संप्रकीर्तितम् ॥61द्वापरयुग 2,000 वर्षों का बताया जाता है, 200 वर्ष संध्या के तथा 200 वर्ष संध्यांश के मिलाकर 2,400 वर्ष बताए गए हैं । लेकिन यह द्वापरयुग तीन पाद का समय भोगता है। एक प्रक्रिया पाद, दूसरा अनुषंग पाद और तीसरा उपोद्घात पाद - इन तीनों पाद के वर्ष और उस हिसाब से संध्या तथा संध्यांश के 300-300 वर्ष मिलाकर 3,600 वर्ष द्वापरयुग की आयु होती है।
तस्यापि द्विशती संध्या सन्ध्यांशो द्विशतस्तथा।
उपोदघातस्तृतीयस्तु द्वापरे पाद उच्यते॥ 62
कलि वर्ष सहस्रन्तु प्राहुःकलियुग हजार वर्षों का है और उसकी संधि 100 वर्षों तथा संध्यांश 100 वर्षों का है, इस प्रकार 1200 वर्ष होते हैं, परन्तु कलियुग चार पाद के समय को भोगता है, अर्थात एक प्रक्रिया पाद दूसरा अनुषंग पाद, तीसरा उपोद्घात पाद और चौथा संहार पाद, इस प्रकार चार पाद के 4,000 तथा उसके अनुसार संध्या तथा संध्यांशके 400, 400 वर्ष मिलाकर 4,800 वर्षों की आयु कलियुग भोगता है ।
संख्याविदो जना:।
तस्यापि शतिका संध्या
सन्ध्यांशः शतमेव च॥ 63
संहार पादः संख्याश्चतुर्थो
वै: कलौ युगे।
ससंध्यानि सहांशानि चत्वारि तु युगानि वै॥64
एतद्द्वादशसाहस्र चतुर्युगमिति स्मृतम्।संध्या और संध्यांश के साथ चारों युगों के 12000 वर्ष कहे गए हैं। इन सभी युग पादों का योग 10000 वर्षों का है और संध्या तथा संध्यांश 2000 वर्ष के हैं। इस प्रकार युग पादों की कुल अवधि 12000 वर्षों की कही गयी है।
एवं पादैः सहस्राणि श्लोकानां पञ्च पञ्च च॥65
संध्यासध्यांशकैरेव द्वे सहस्र तथाऽपरे।
एवं द्वादशसाहस्र पुराणं कवयो विदुः॥66
निम्नलिखित सनातन शास्त्रों में भी चारों युगों की आयु 12000 मनुष्य वर्ष बताई गई है -
* महाभारत वनपर्व (188. 22-29)
* महाभारत शांति पर्व (231.20)
* श्री हरिवंश पुराण हरिवंश पर्व (8.12-16)
* श्री हरिवंश पुराण भविष्य पर्व (8.1-19)
* मनुस्मृति (1.69-70)
* लिंग पुराण (4.5-6)
* वायु पुराण (57.23-28)
युग गणना के मूल सूत्र को बहुत बारीकी से वर्णन किया गया है। पाद गणना को न समझ पाने के कारण ही कलियुग को 1,200 वर्ष माना गया और इसके विकल्प में वर्षों की संख्या को दिव्यवर्ष मानकर 360 गुना बढ़ा दिया गया।
अतः यह स्पष्ट होता है कि सत्ययुग 1,200 साल, त्रेतायुग 2,400 साल, द्वापरयुग 3,600 साल तथा कलियुग 4,800 मानव वर्ष का ही है।
श्रीमद्भागवत महापुराण और श्रीविष्णु पुराण में कलियुग की शुरुआत और अंत का वर्णन किया गया है।
सप्तर्षीणां तु यौ पूर्वौ दृश्येते उदितौ दिवि।उपरोक्त श्लोक के अनुसार सप्तर्षि एक नक्षत्र में 100 वर्ष तक रहते हैं। जिस समय कलियुग की शुरुआत हुई, उस समय सप्तर्षि मघा नक्षत्र में स्थित थे।
तयोस्तु मध्ये नक्षत्रं दृश्यते यत् समं निशि॥
तेनैव ऋषयो युक्तास्तिष्ठन्त्यब्दशतं नृणाम्।
ते त्वदीये द्विजा: काल अधुना चाश्रिता मघा:॥श्रीमद्भागवत महापुराण (12.2.27-28) व श्रीविष्णु पुराण, चतुर्थ अंश (24.102)
यदा देवर्षय: सप्त मघासु विचरन्ति हि।
तदा प्रवृत्तस्तु कलिर्द्वादशाब्दशतात्मक:॥- श्रीमद्भागवत महापुराण (12.2.31)
अर्थात जिस समय सप्तर्षि मघा नक्षत्र पर विचरण कर रहे थे, उसी समय कलियुग का प्रारंभ हुआ।
शस्त्रों के अनुसार सत्ययुग का प्रारंभ
यदा चन्द्रश्च सूर्यश्च तथा तिष्यबृहस्पती।
एकराशौ समेष्यन्ति भविष्यति तदा कृतम्॥श्रीमद्भागवत महापुराण (12.2.24) , महाभारत वन पर्व (190.90-91), विष्णु पुराण, चतुर्थ अंश (24.102)
जिस समय चंद्रमा, सूर्य और बृहस्पति एक ही समय, एक ही साथ पुष्य नक्षत्र के प्रथम पल में प्रवेश करके एक राशि पर आएंगे, उसी समय सत्ययुग का प्रारंभ होगा।
ज्योतिषीय गणना और सत्ययुग का आरंभ -
ज्योतिषीय गणना के अनुसार कलियुग के इस 5128 वर्ष के काल में सप्तर्षि ने पुष्य नक्षत्र में दो बार विचरण किया और यह खगोलीय घटना 1 अगस्त 1943 को घटित हुई जब चंद्रमा, सूर्य और बृहस्पति एक ही समय, पुष्य नक्षत्र के प्रथम पल में एक ही साथ प्रवेश किया। अतः यह स्पष्ट होता है कि 1 अगस्त 1943 से सत्ययुग की शुरुआत हो चुकी है।
कलियुग का अंत -
जैसे किसी भी निर्माण को बनाने में अधिक समय लगता है, उसे ध्वस्त करने में भी कुछ समय जरूर लगता है। इसी प्रकार यह कलियुग 5000 वर्ष रहा और इसे ध्वस्त होने में भी 70-80 साल का समय लग सकता है। अतः इन सब प्रमाणों को पाने के बाद यह बात निश्चितता के साथ सिद्ध होती है कि कलियुग का अंत हो चुका है।
निष्कर्ष
इन प्रमाणों और शास्त्रों के आधार पर यह स्पष्ट है कि कलियुग की वास्तविक आयु 4800 मानव वर्ष है एवं कलियुग का अंत हो चुका है और सत्ययुग की शुरुआत हो चुकी है तथा कुछ ही वर्षों में सम्पूर्ण सत्ययुग का प्रकाश विश्व में हो जाएगा।